Tuesday, July 19, 2011

जमीन से शिखर के प्रतीक हनुमान सरावगी


डा.विष्णु राजगढि़या
रांची: बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हनुमान सरावगी का निधन एक अपूरणीय क्षति है। जमीन से शिखर तक पहुंचने का उनका सफर कम-से-कम पूर्वी भारत के लिए अद्वितीय कहा जा सकता है। स्वयं-निर्मित व्यक्तित्व या सेल्फ मेड का बेजोड़ नमूना थे हनुमान सरावगी। विरासत में उन्हें सिर्फ संघर्ष मिला था। लेकिन उनके लिए यह संघर्ष सिर्फ अपनी चिंता करना नहीं बल्कि देश और समाज के सरोकारों से जुड़ने का माध्यम बना। दक्षिण बिहार की छोटी-सी रांची नगरी में अपने बूते अपना व्यवसाय करके आर्थिक रूप सफलता के शिखर पर पहुंचने के अन्य उदाहरण मिल सकते हैं। लेकिन आजीवन ऐसे छोटे शहर में ही रहकर राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से पहचान कायम करना और व्यावसायिक दायित्वों के बावजूद बौद्धिक तौर पर अपनी विशिष्टता स्थापित करना सचमुच हैरान करने वाली है।
रांची में रहते हुए उन्होंने अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन जैसे ख्यातिलब्ध संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बतौर अपनी सांगठनिक क्षमता का परिचय दिया। उन्होंने राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में शामिल कराने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया और अपनी माताजी की स्मृति में गोदावरी देवी सरावगी राजस्थानी महिला पुरस्कार की स्थापना की। ऐसे कदमों के जरिये उन्होंने इस मिथक को तोड़ा कि राष्ट्रीय स्तर के सामाजिक संगठनों का नेतृत्व सिर्फ दिल्ली-मुंबई या कोलकाता जैसे महानगरों में बैठने वाले लोग ही कर सकते हैं।
1990 दशक के प्रारंभिक दौर में पटना से रांची आकर प्रभात खबर से जुड़ने के क्रम में स्वर्गीय सरावगी से मिलने का अवसर मिला। अग्रसेन जयंती के अवसर पर हरिवंश जी ने प्रभात खबर के लिए दो पेज का विशिष्ट आयोजन करने का दायित्व सौंपा था। इस क्रम में रांची, खासकर अपर बाजार के जिन चुनिंदा सामाजिक लोगों से चर्चा का अवसर मिला, उनमें हनुमान सरावगी भी एक थे। लेकिन इस पहली मुलाकात में ही उनके बौद्धिक व्यक्तित्व ने अपनी अमिट छाप छोड़ी। खास बात यह कि स्वयं सरावगी जी ने भी इस संबंध को स्थायी रूप देते हुए गाहे-बगाहे स्वयं संपर्क करके आमंत्रित करना या अपने किसी आदमी को भेजकर बुलाने का सिलसिला जारी रखा। मुलाकात में कभी ज्यादा दिनों का अंतर हो जाता तो प्यार भरा उलाहना भी देते कि आप तो आजकल दिखते ही नहीं। इस दौरान उनसे मिलने हमेशा काफी प्रेरक, विचारोत्तेजक और ऊर्जादायी होता। आम तौर पर व्यावसाय या उद्यम से जुड़े लोगों से सर्वथा विपरित उनके पास हर वक्त देश और समाज से जुड़े ऐसे मसले और उन पर मौलिक चिंतन होता, जो आपको कुछ नया सीखने, सोचने का अवसर देता। मुझे हैरानी होती कि एक व्यावसायिक मंडी में बैठकर, धंधे की तमाम चिंताओं के बीच कोई आदमी किस तरह ऐसे विषयों पर चिंतन और विमर्श कर सकता है।
स्वर्गीय सरावगी का सफर रांची और झारखंड के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास के साथ निरंतर समानांतर एवं परस्पर जुड़ा रहा। रांची के शहरी विकास के लिए सरकार द्वारा बनाये गये रांची इंम्प्रूवमेट ट्रस्ट के सदस्य के बतौर उनका योगदान इसका एक उदाहरण है। छोटानागपुर संथाल परगना अलग राज्य संघर्ष समिति के मानद सचिव के बतौर झारखंड आंदोलन में उनकी हिस्सेदारी भी इसका एक उदाहरण है।
रांची और झारखंड की अधिकांश महत्वपूर्ण संस्थाओं की संस्थापक टीमों और उन्हें गतिमान बनाने वाले महत्वपूर्ण स्तंभ के बतौर उन्हें हमेशा याद किया जायेगा। इस सूची में छोटानागपुर चैंबर आॅफ कामर्स एंड इंडस्टी्रज, लायंस क्लब, रांची संगीत परिषद, रांची सिटिजन्स फोरम, राजस्थान चेतना मंडल, श्री चांदमल जैन बाल मंदिर, श्री अरविंद सोसाइटी, आरएलएसएम विद्यालय, रांची जूनियर चैंबर, युवक संघ, इंडियन जूनियर चैंबर, रांची होम्योपैथिक मेडिकल काॅलेज एवं हास्पिटल, नागरमल मोदी सेवा सदन, मारवाड़ी काॅलेज, आरोग्य भवन समूह एवं प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र, मारवाड़ी शिक्षा ट्रस्ट, राजस्थान छात्रावास, राधाकृष्ण अभिनंदन समिति, गांधी शांति प्रतिष्ठान संगोष्ठी, भगवान महावीर 2500 निर्वाण महोत्सव, छोटानागपुर संथाल परगना विकास प्राधिकार, बिहार राज्य औद्योगिक विकास निगम, बिहार राज्य निर्यात विकास सलाहकार बोर्ड, बिहार राज्य बाल कल्याण परिषद, आकाशवाणी सलाहकार समिति, बिरसा मुंडा शताब्दी समारोह समिति, भारतीय संस्कृति अकादमी, राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति, रांची स्टेडियम समिति, अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन, मारवाड़ी सहायक समिति, श्री रतनलाल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट, हनुमान सरावगी धार्मिक न्यास, झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन, श्री कोल्हुआ पहाड़ दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी, भगवान 1008 शीतलनाथ दिगंबर जैन क्षेत्र कमेटी, झारखंड प्रदेश दिगंबर जैन महासंघ, भारतीय साहित्य विकास न्यास, अखिल भारतीय वैश्य अग्रवाल महासंघ, झारखंड प्रदेश तीर्थ संरक्षणी महासभा, रांची विकास समिति, अखिल भारतीय आध्यात्मिक उत्थान मंडल, झारखंड समन्वय परिषद, भारतीय रेडक्रोस सोसाइटी, विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी, इस्काॅन, आॅथर्स गिल्ड आॅफ इंडिया, आई.सी. सेंटर फाॅर गवर्नेंस, संत जेवियर्स काॅलेज गवर्निंग बाॅडी, झारखंड साहित्य सम्मेलन, पारसनाथ विकास प्राधिकार, भारतीय संस्कृति विहार, रांची क्लब, जिमखाना क्लब, फेडरेशन आॅफ इंडियन चैंबर्स आॅफ कामर्स एंड फेडरेशन आॅफ झारखंड चैंबर्स आॅफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज, इंडस्ट्रीज, कनफेडरेशन आॅफ इंडियन इंडस्ट्री, झारखंड स्माॅल इंडस्ट्री एसोसिएशन जैसी राज्य अथवा राष्ट्रस्तरीय संस्थाएं शामिल हैं।
स्वर्गीय सरावगी की हिंदी, अंग्रेजी और राजस्थानी भाषाओं पर अद्भुत पकड़ थी। उन्होंने विभिन्न विषयों पर निरंतर लेखन किया और उनका प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में होता रहा। झारखंड बनने के बाद अधिकांश राज्यपाल उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए और उनके साथ संबंध ऐसे प्रगाढ़ हुए कि प्रभात कुमार, श्री रामा जोइस, वेद मारवाह जैसे राज्यपालों ने झारखंड से विदाई के बाद भी उनसे जीवंत रिश्ते बनाये रखे। शंकराचार्य से लेकर कार्डिनल तक के साथ उनके प्रगाढ़ संबंध रहे। प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश भी रांची के जिन चुंनिंदा लोगों से मिलना-जुलना पसंद करते रहे, उनमें स्वर्गीय सरावगी का नाम प्रमुख है। कई महत्वपूर्ण राजनीतिकों का सफर स्वर्गीय सरावगी के साथ गहरे जुड़ाव और उनके सक्रिय सहयोग से जुड़ा रहा है।
कई बार लगता था कि ऐसी बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्तित्व के लिए रांची जैसे एक जिला मुख्यालय में आजीवन रहना एक सीमा में बांधे रखने जैसा है। किसी महानगर में रहने से इस प्रतिभा को निखरने का ज्यादा विस्तारित आसमान मिलना। लेकिन उन्होंने इस सीमित उड़ान क्षेत्र में ही शिखर तक उड़ान भरकर तमाम सीमाओं को तोड़ा। ऐसे प्रेरणादायी व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि।
प्रभात खबर, 18 जुलाई 2011

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